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दिनांक 20 जुलाई 2024 को सरस्वती विद्या मंदिर, सिनीडीह में संस्कृत सप्ताह का समापन सह गुरु पूर्णिमा उत्सव का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्री मुरारी प्रसाद एवं प्रधानाचार्य के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री अजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि संस्कृत भाषा प्राचीन भाषा ही नहीं आधुनिक वैज्ञानिक भाषा भी है। हिंदी के तत्सम शब्द का मूल संस्कृत ही है।

इसकी विशेषता यह है कि इसमें जो लिखा होता है उसका उच्चारण वही होता है। संस्कृत को बोधगम्य और सर्वसुलभ बनाने के लिए संस्कृत भाषा का निरंतर प्रयोग आवश्यक है। नैतिक मूल्यों के संवर्धन के लिए संस्कृत विषय का शिक्षण आज अनिवार्य है। विविध प्रकार की प्रतियोगिता का भैया -बहनों के बीच आयोजन करने से उनकी भाषाभिव्यक्ति प्रबल होती है।

प्रधानाचार्य श्री राकेश सिन्हा ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत हमारी विरासत है अत: इसका संरक्षण एवं प्रयोग अति आवश्यक है। आज जो हम आधुनिक विज्ञान का विकसित रूप देख रहे हैं, इसमें हमारे धर्म शास्त्रों का बहुत बड़ा योगदान है। संस्कृत के ज्योतिष शास्त्र की गणना आज के वैज्ञानिक युग में भी सटीक सिद्ध होती है।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु पूजन का कार्यक्रम हमारी भारतीय संस्कृति का महानतम गुरु-शिष्य परंपरा को जीवंत रखता है। शिष्यों के समग्र विकास में गुरु का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है।

मुख्य अतिथि श्री मुरारी प्रसाद ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भाषा को अपनाकर निश्चित रूप से हम अपनी महानतम संस्कृति को एक उदाहरण के रूप में विश्व के रंगमंच पर स्थापित कर सकते हैं। गुरु का महत्व प्राचीन काल से ही आदर्श रूप में रहा है। चाणक्य के अनुसार सृष्टि और प्रलय दोनों गुरु के गोद में खेलते हैं।

गुरु का सत्कार करना हमारा परम धर्म है। आज के कार्यक्रम में संस्कृत भाषा में वास्तु प्रदर्शनी का आयोजन भव्य रूप से हुआ। इस अवसर पर संस्कृत में रंगमंचीय कार्यक्रम भी संपन्न हुआ। साथ ही गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर विद्यालय के भैया -बहन एवं आचार्य दीदीजी के द्वारा वेदव्यास का पूजन हुआ। वस्तु प्रदर्शिनी में प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले भैया- बहनों को पुरस्कृत भी किया गया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्कृत विषय के प्रमुख श्रीमती सुलेखा कुमारी,आचार्या श्रीमती निशा तिवारी,आचार्य श्री नवल किशोर झा, श्री धर्मेंद्र तिवारी, श्री सुधीर कुमार दास, श्री जितेंद्र कुमार दुबे, श्री पीयूष बेरा,श्री विकास कुमार गुप्ता,श्री मुरारी दयाल सिंह, श्री राजेश कुमार, श्री अरविंद कुमार, श्री कमलेंदु नारायण चंद्र, श्रीमती कुमारी नमिता के साथ-साथ सभी आचार्य बंधु-भगिनी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वंदे मातरम् के उपरांत कार्यक्रम की समाप्ति हुई।

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