जहां बुजुर्गों का सम्मान होता है, वह घर स्वर्ग समान होता है- राकेश सिन्हा
विद्या विकास समिति, झारखंड द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर, सिनीडीह में दिनांक-28जून 2024 को दादा- दादी, नाना- नानी सम्मान समारोह आयोजित की गई। इसकी शुरुआत छात्र-छात्राओं द्वारा दादा -दादी, नाना-नानी का चरण प्रक्षालन, चंदन टीका एवं पुष्पार्चन कर उनके स्वागत से की गई।
इसके उपरांत वंदना सभागार में मुख्य अतिथि श्री चरण महतो, विशिष्ट अतिथि श्री विनोद सिंह, इस क्षेत्र के पतंजलि योग शिक्षक श्री ललन यादव, विद्यालय के कोषाध्यक्ष श्री राजेंद्र प्रसाद, विद्यालय कार्यकारिणी के सदस्य श्री उत्तम गायली, दादी प्रतिनिधि श्रीमती मंजू श्रीवास्तव, पूर्व आचार्य श्री सतीश पांडे एवं विद्यालय के प्राचार्य श्री राकेश सिन्हा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती, ॐ एवं भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन किया। इस दौरान विद्यालय के बच्चों द्वारा दादा -दादी, नाना- नानी का स्तुति गान किया गया।
इस कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए विद्यालय के प्राचार्य श्री राकेश सिन्हा ने कहां कि जहां बुजुर्गों का सम्मान होता है, वह घर स्वर्ग समान होता है। उन्होंने छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि दादा-दादी, नाना-नानी सम्मान समारोह आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य छात्र-छात्राओं में भारतीय संस्कृति एवं संस्कार पक्ष को विकसित करना है। उन्होंने कहा कि दादा-दादी, नाना-नानी ईश्वर के प्रतिरूप होते हैं।
उनका सदैव सम्मान होना चाहिए, क्योंकि बच्चों में असली संस्कार दादा-दादी एवं नाना-नानी ही भरते हैं।परंतु वर्तमान समय में ऐसा लग रहा है कि बुजुर्गों के प्रति हम उदासीन होते जा रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति हमारे ऊपर हावी होती जा रही है। तभी तो जगह-जगह पर हैप्पी होम एवं वृद्धाश्रम विकसित होते जा रहे हैं।
परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुजुर्ग वट वृक्ष की तरह होते हैं, जिसकी छाया हमें शांति ,समृद्धि एवं सुरक्षा प्रदान करती है। इसी भाव को ध्यान में रखते हुए विद्या भारती ने अपने विद्यालयों मेंदादा-दादी, नाना-नानी सम्मान समारोहकी शुरुआत की। अतः इस भाव को समझते हुए हमें बुजुर्गों के प्रति हमेशा सम्मान का भाव रखना चाहिए ,तभी तो समाज के साथ-साथ हमारे राष्ट्र का भी स्वरूप बदलेगा।
मंच संचालन करते हुए विद्यालय के आचार्य श्री विश्वनाथ दास ने कहा कि भारतीय संस्कृति को पुनर्स्थापित करने के लिए विद्या भारती ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की। बच्चों को संस्कारित करने एवं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु विद्या भारती के सभी विद्यालयों में यह समारोह प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। दादा-दादी, नाना-नानी के निकट बच्चे अपने आप को सुरक्षित समझते हैं।
आज के इस भाग -दौड़ वाली जिंदगी में यह कार्यक्रम समाज को एक संदेश देता है कि बुजुर्गों का सम्मान ही हमारी संस्कृति को बचा सकती है। इस सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि श्री चरण महतो ने विद्यालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं हर वर्ष इस विद्यालय में इस सम्मान समारोह में सम्मिलित होता हूं और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं।
वैसे तो इस क्षेत्र में कई विद्यालय हैं परंतु मैं अपने घर के सभी बच्चों को इसी विद्यालय में शिक्षित किया हूं जो आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होकर कार्यरत हैं। अपने पोते -पोतियो को भी मैं किसी विद्यालय में शिक्षा दिला रहा हूं। दादी प्रतिनिधि श्रीमती मंजू श्रीवास्तव ने कहा कि मेरे तीन पोते और दो नाती इस विद्यालय में अध्यनरत हैं।
मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हूं कि उन्हें यह अवसर इस विद्यालय ने दिया है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य श्री विधान चंद्र झा ने कहा कि विलुप्त होती जा रही यह परंपरा आज मन को आंदोलित कर रही है, परंतु विद्या भारती ने पुनः इस कार्यक्रम की शुरुआत करके भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।
अतः मैं हृदय से विद्या भारती एवं कार्यक्रम में आने वाले सभी बुजुर्गों को प्रणाम करता हूं एवं उनका आभार व्यक्त करता हूं।
कार्यक्रम में आए हुए अतिथियों का परिचय विद्यालय के आचार्य श्री धर्मेंद्र तिवारी ने किया। मंच संचालन विद्यालय के आचार्य श्री विश्वनाथ दास एवं श्रीमती प्रियंका बागची ने किया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में विद्यालय के आचार्य श्री विकास गुप्ता, श्री अशोक कुमार सिंह, श्रीमती निशा तिवारी, श्रीमती कुमारी नमिता, श्री नवल किशोर झा, श्रीमती अनीता कुमारी, श्री मुरारी दयाल सिंह, सुश्री नमिता कुमारी, श्रीमती उषा कुमारी, श्री जितेंद्र कुमार दुबे, श्रीमती सुतापा विश्वास, श्रीमती विनीता कुमारी, श्रीमती सुलेखा कुमारी एवं श्री पीयूष बेरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।